Tuesday, August 17, 2010

शाम के साए बालिश्तों से नापे हैं

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खुशबू  जैसे लोग मिले अफ़साने में 
इक पुराना ख़त खोला अनजाने में ! 

शाम के साए बालिश्तों से नापे हैं
चाँद ने कितनी देर लगादी आने में !

दिल पर दस्तक देने ये कौन आया है
किसकी आहट सुनता हूं वीराने में !

जाने किसका ज़िक्र है इस अफ़साने में
दर्द मज़ा लेता है जो दोहराने में !!
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1 comment:

Pankaj parijat said...

खुशबू जैसे लोग मिले अफ़साने में
इक पुराना ख़त खोला अनजाने में !

Venus...aapka jitna bhi shukriya ada kiya jaye kam hai...bahut sunder sankalan hai ...mujhe to jaise jannat mil gayi....