Friday, August 13, 2010

गुलज़ार ...आपके लिए............





मैं कैसे बताऊँ के तुम मेरे लिए क्या हो
प्यासे चातक की वो बुझी प्यास हो
जो स्वाति की पहली बूँद के चखने  से हो

मैं कैसे बताऊं तुम मेरे लिए क्या हो
दुनिया भर से उलझते- २ झगड़ते- २
थक के जो सर टिकाते ही पा जाऊं
माथे पे उस सुबुक-शफीक लम्स से हो !


मैं कैसे बताऊं तुम ..............................
अज़ीयत ए हस्ती ने नाज़िस किया दिल
तेरे कलाम से धोया तो पाकीज़गी पायी
मेरे लिए तो तुम आब ए ज़मज़म से हो
तुम मेरे लिए क्या हो ............................

अक्सर जली हूं खुद पकड़ हाथों में शोले
मुझे लगाये मलहम और पौछें आंसूं भी
मेरे लिए तो तुम अह्बाबी हाथों से हो

मैं कैसे बताऊं तुम मेरे लिए क्या हो !!

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1 comment:

*****************8 said...
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