Friday, December 24, 2010

from "Raat Pashmine ki"

मुझे खर्ची  में पूरा  एक दिन , हर रोज़ मिलता है
मगर  हर रोज़ कोई छीन लेता है ,
झपट लेता है, अंटी  से
कभी  खीसे  से  गिर  पड़ता  है  तो  गिरने  की
आहट  भी  नहीं  होती ,
खरे  दिन  को  भी  खोटा  समझ  के  भूल   जाता  हूँ  में

गिरेबान  से  पकड़  कर  मांगने  वाले  भी  मिलते  हैं
"तेरी  गुजरी  हुई  पुश्तों  का  कर्जा  है , तुझे  किश्तें  चुकानी  है "

ज़बरदस्त  कोई  गिरवी  रख  लेता  है , ये  कह  कर

अभी  2-4 लम्हे  खर्च  करने  के  लिए  रख  ले ,
बकाया  उम्र  के  खाते  में  लिख  देते  हैं ,
जब  होगा , हिसाब  होगा

बड़ी  हसरत  है  पूरा  एक  दिन  इक  बार  मैं
अपने  लिए  रख  लूं ,
तुम्हारे  साथ  पूरा  एक  दिन  
बस  खर्च
करने  की   तमन्ना  है  !!

10 comments:

बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरना said...

या अल्लाह ! रहम कर ...इसकी झोली भर दे ........एक पूरा दिन ही तो मांगा है

VenuS "ज़ोया" said...

haaan..baba..sach me..kabhi..kaash ik puraaaaaa din..sirf aur sirf..aapne liye..kaash mil jaaye..pr aisaa hota nhi .he ..he naa

amit kumar srivastava said...

नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।

amit kumar srivastava said...

नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।

महेन्‍द्र वर्मा said...

बहुत सुंदर प्रस्तुति
........
नव वर्ष 2011
आपके एवं आपके परिवार के लिए
सुख-समृद्धिकारी एवं
मंगलकारी हो।
।।शुभकामनाएं।।

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

ज़ोया जी, आपकी यह दिली तमन्‍ना जल्‍द से जल्‍द पूरी हो, हमारी यही दुआ है।

नया साल आपको मुबारक हो।

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मिल गया खुशियों का ठिकाना।
वैज्ञानिक पद्धति किसे कहते हैं?

लाल कलम said...

achhi kavita bahut sundar

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

are vaah.....sachmuch aapki jholi bharega allaah....kam-se-kam aise sundar shabdon se...!!!

amrendra "amar" said...

Bahut sunder rachna , man ko chu gayi

Munish said...

धीरे-धीरे बंद कर दिया गया सब कुछ न जाने क्यों