Thursday, July 21, 2011

सूरज फिर से जलने लगे !



गुलज़ार साहब, वर्तमान ब्रह्माण्ड के भविष्य पर -


थोड़े से करोड़ों सालों में
सूरज की आग बुझेगी जब
और राख उड़ेगी सूरज से
जब कोई चाँद ना डूबेगा
और कोई ज़मीं ना उभरेगी
दबे बुझे एक कोयले सा
टुकड़ा ये ज़मीं का घूमेगा भटका भटका
मद्धम खाकीस्तरी रोशनी में

मैं सोचता हूँ उस वक़्त अगर
कागज़ पे लिखी एक नज़्म कहीं
उड़ते उड़ते सूरज में गिरे
और सूरज फिर से जलने लगे !


2 comments:

Vaanbhatt said...

यक़ीनन...जलेगा...बुझे सूरज की परिक्रमा करते...बुझे-बुझे ग्रह...अच्छी कल्पना...

VenuS "ज़ोया" said...

shukriyaaa