उस रात बहुत सन्नाटा था
उस रात बहुत खामोशी थी
साया था कोई ना सरगोशी
आहट थी ना जुम्बिश थी कोई
आँख देर तलक उस रात मगर
बस इक मकान की दूसरी मंजिल पर
इक रोशन खिड़की और इक चाँद फलक पर
इक दूजे को टिकटिकी बांधे तकते रहे
उस रात बहुत खामोशी थी
साया था कोई ना सरगोशी
आहट थी ना जुम्बिश थी कोई
आँख देर तलक उस रात मगर
बस इक मकान की दूसरी मंजिल पर
इक रोशन खिड़की और इक चाँद फलक पर
इक दूजे को टिकटिकी बांधे तकते रहे
रात चाँद और मैं तीनो ही बंजारे हैं
तेरी नाम पलकों में शाम किया करते हैं
तेरी नाम पलकों में शाम किया करते हैं
कुछ ऐसी एहतियात से निकला है चाँद फिर
जैसे अँधेरी रात में खिड़की पे आओ तुम
जैसे अँधेरी रात में खिड़की पे आओ तुम
क्या चाँद और ज़मीन में भी कोई खिंचाव है
रात चाँद और मैं मिलते हैं तो अक्सर हम
तेरे लेहज़े में बात किया करते हैं
सितारे चाँद की कश्ती में रात लाती है
सहर में आने से पहले बिक भी जाते हैं
सहर में आने से पहले बिक भी जाते हैं
बहुत ही अच्छा है व्यापार इन दिनों शब का
बस इक पानी की आवाज़ लपलपाती है
की घात छोड़ के माझी तमामा जा भी चुके हैं
चलो ना चाँद की कश्ती में झील पार करें
रात चाँद और मैं अक्सर ठंडी झीलों को
डूब कर ठंडे पानी में पार किया करते हैं
7 comments:
रात चाँद और मैं तीनो ही बंजारे हैं
वेणु ! तुम्ह्ने क्या लगता है ....हम लोग भी तो बंजारे ही हैं न ! मुझे यह ज़िंदगी अच्छी लगती है. रात...चाँद.....तारे ...और धरती के कुछ बंजारे. वाह क्या ज़िंदगी है !
hmmmmmmm...jii baba..........sach akhaaa.......Gulzaar ji jaane kahnaaase meree dil ko apnee shabdon se jaane mere hone se peahle hii ukere ja rhe hain
रात चाँद और मैं अक्सर ठंडी झीलों को
डूब कर ठंडे पानी में पार किया करते हैं
वाह क्या कहने आपकी रचनात्मकता के ....आपका आभार
बहुत सुन्दर अभिब्यक्ति| धन्यवाद|
pahali baar is paane per aaya...lga gulzar ki juthan nahin hai...gulzar ko mil jaye to piro lenge...bikhare moti hain...shabdon ka sanyojan kamal ka hai...
सुन्दर रचना... बहुत बहुत बधाई ।।।।
hello ji, aapko padh ke acha laga, main bhi gulzar saheb ka deewana hu, un pe fb ek page banaya hai, gulzar gulistaan ke naam se, pls btaye meri kosish kaisi hai
https://www.facebook.com/GulzarGulistaan/
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