एक सुबह इक मोड़ पर
मैने कहा उसे रोक कर
हाथ बढ़ा ए ज़िंदगी
आँख मिला के बात कर
रोज़ तेरे जीने के लिये,
इक सुबह मुझे मिल जाती है
मुरझाती है कोई शाम अगर,
तो रात कोई खिल जाती है
मैं रोज़ सुबह तक आता हूं
और रोज़ शुरु करता हूं सफ़र
हाथ बढ़ा ए ज़िंदगी
आँख मिला के बात कर
तेरे हज़ारों चेहरों में
एक चेहरा है, मुझ से मिलता है
आँखो का रंग भी एक सा है
आवाज़ का अंग भी मिलता है
सच पूछो तो हम दो जुड़वां हैं
तू शाम मेरी, मैं तेरी सहर
हाथ बढ़ा ए ज़िंदगी
आँख मिला के बात कर
मैने कहा उसे रोक कर.